संदूक ------
ना जाने क्या था उस संदूक में .....दादी किसी को छूने ही नहीं देती थी .... मानो हम ले लेंगे ... या फिर हमारे छूने से मैली हो जाएगी ... हम भाई बहनों में कोई अगर पूछता भी कि आपके इस संदूक में क्या है दादी ? तो तपाक से बोलती ...तुम लोगों को उससे मतलब ! अस्सी की हो चलीं थीं फिर भी चेहरे का तेज अभी तक बरक़रार था और वक्तित्व वैसा ही रोबदार .....कई बार मैंने माँ से पुछा - माँ दादी ने अपने उस संदूक में क्या रखा है? तो माँ भी येही कहता - पता नहीं बेटा , ये तो वो ही जाने ! जबसे दादा जी गए हैं उस संदूक को मनो सीने से लगाये बैठी है अम्मा , नज़रों से ओझल ही नहीं होने देती ! फिर यकायक मेरी और देखते हुए , तुझे क्या लेना ..तू हमेशा उनके संदूक के पीछे क्यू पड़ी रहती है .... ? बड़ी आयी जासूस ! माँ भी मुझे ही डाट कर चुप करा देती .... !कई बार दादी के सो जाने के बाद मेरा मन डोला ...चलो देख लेती हूँ आखिर इस संदूक में है क्या .... कई बार उनके सिरहाने रखी चाभी भी मैंने चुपके से उठा लिया था .... संदूक के पास जाकर हिम्मत ही नहीं होती उसे खोलने की .... सारे इरादे पस्त हो जाते थे .... नहीं दादी को धोका नहीं दे सकती ....उनसे खुद कहूँगी - दादी दिखाओ न प्लीज़ ! और चाभी उसी जगह वापस रख देती। .... ! दिन बा दिन मेरी जिज्ञासा बढती जाती ...जब - जब उस संदूक को देखती ...मानो अन्दर से आवाज़ आती .... क्या होगा इसमें? पैसे तो नहीं हो सकते .... क्यूंकि जब कभी बाबा , बुआ या चचा उन्हें पैसे देते तो वो लेती नहीं और कभी ले भी लेती तो मुझे दे दिया करती . , कहती - ज़रुरत पड़ी तो तुझसे मांग लुंगी ...! तो फिर आखिर है क्या उसमें ?ये मेरे लिए एक पहेली बनी रहती जिसे मैं हर हाल में सुलझाना चाहती थी ...
मैं दादी के बहुत पास थी ,उनके साथ ही सोया करती .... आँखें कमज़ोर थी सो रात में उन्हें मेरी ज़रुरत पड़ती , जब तक नींद न आये हम दोनों बातें करते ...
मैंने पुछा - " दादी दादा के बारे में बताओ ना, हमने तो उन्हें कभी नहीं देखा ...
ठीक से तो मैंने भी कहा देखा था , दादी बोलीं ...
मैं कुछ समझी नहीं ..
दादी ने बताया - तुम्हारे दादाजी साल में एक महीने क लिए छुट्टी पर आया करते थे,
मैंने पुछा तब तो आप चिठियाँ लिखती होंगी,
वो मुस्कुराई ...झुर्रियों वाली मुस्कराहट ... बिना दांतों वाली मुस्कराहट ...., बोलीं - हाँ बेटा वही तो एक माध्यम था हमारे बीच ... न फोन , न वो का कहते है कंप?
कंप्यूटर दादी ... मैंने उन्हें टोकते हुए कहा !
हाँ हाँ वही ! बस चिठियों से हाल खबर मिलती रहती थी ... तुम लोगों का ही ठीक है ,जब चाहे जिससे चाहे बात कर लिया ....फ़ोन अपने साथ लिए फिरते हो .....हम तो दादाजी की आवाज़ सुनने के लिए तरस जाते थे ....देखना तो दूर की बात है .....पता है ....? फिर उनकी आवाज़ में थोड़ी उदासी छा गई ..... तुम्हारे चाचा के जन्म पर आखिर बार आये थे .... उसके बाद उनका मृत शरीर घर आया था ... सुना फैक्टरी में काम करते करते गिर पड़े थे .... वो चुप हो गई ....उस हलकी सी रोशिनी में भी मैंने उनकी डबडबाई आँखों को देख लिया था .....चल अब सो जा, सुबह कालेज नहीं जाना किया?
और उन्होंने करवट बदल ली ...मैं भी थोड़ी देर शुन्य भाव में लेटी रही फिर कब नींद आ गई पता ही न चला ....
आज कल दादी बीमार रहने लगी थी .... कोई खास रोग तो नहीं था बस बुढ़ापा हावी हो गया था .... आँखों से दिखना बिलकुल बंद हो गया था ...बाबा दादी का ख्याल रखते ...अपने हाथों से निवाला उनके मुंह में डालते ...बोलते "अम्मा के मुहियाँ में गुटूक" ...दादी भी चिड़िये के बच्चे की तरह मुंह खोल देती ... बाबा का दादी को खाना खिलने का ये पल मैं कभी मिस नहीं करती थी ... खाने की थाली बाबा के हाथों में थमा कर वही बैठ जाती .... और माँ बेटे का ये प्रेम देखती रहती ....दोपहर में अक्सर बाबा खाना खिलने के बाद दादी को लोरी सुनाते ...और दादी भी नवजात शिशु की तरह उनके गोद में सर रख कर लेट जाती .....कभी - कभी लोरी सुनते सुनते सो भी जाया करती ... और बाबा उनके चेहरे को निहारते रहते ...उनके बालों पर हाथ फेरते हुए कहते -' जब हम छोटे थे अम्मा हमें ऐसे ही सुलाया करती ... अब हमारी बारी है ...'एक दिन सुबह बाबा और दादी नाश्ता कर रहे थ ... तभी हमारी नौकरानी आई और बताया क पड़ोस के घर में बीती रात चोरी हो गई ... दादी घबराकर बोली अरे ! देखना कहीं चोर मेरा संदूक भी तो ले कर नहीं चले गए ... हम सभी हंस पड़े ... मैं ने कहा दादी चोरी पड़ोस के घर एमें हुई है हमारे यहाँ नहीं .... तभी नौकरानी ने बोला - आपके इस टूटे संदूक को कौन ले जायेगा अम्मा ? दादी उसकी बात पर खीज गई ... तुझे बड़ा पता है मेरे संदूक के बारे में ? कहीं हाथ वाथ तो नहीं लगाती उसको ? नौकरानी फिर कुछ बोलना चाह रही थी ...पर बाबा ने इशारों में चुप करा दिया ...
जब भी कोई संदूक की बात करता तो दादी भूकी शेरनी की तरह टूट पड़ती ...अन्यथा वो बहुत ही मृदुल और सौम्य स्वभाव की थीं ....
एक रात हम दादी - पोती की गप्पे बाज़ी फिर शुरू हो गयी ...... अच्छा सुन ..? मैंने सुना की बाबा ने तेरे लिए एक लड़का पसंद किया है …जल्द ही तुम्हारी सगाई होने वाली है ......और उसके बाद शादी ?
क्या ? मेरा चौकना उचित था ...
हाँ तेरी अम्मा कह रही थी ...लड़का अच्छा है ....कहीं विदेश में कमाता है ...अच्छा परिवार है ....खुश रहेगी तू ...
पर दादी मैं अभी शादी करना नहीं चाहती ...अभी उम्र ही क्या है मेरी ?
२ १ की हो गई है तू ...?
तो ? मैं कुछ नहीं जानती ...बस मैं अभी शादी के लिए तैयार नहीं हु .... अच्छा ये बताओ तुम्हारी शादी कब हुई थी ? मैंने बात बदलते हुए कहा ...
शादी ....का तो पता नहीं पर तेरे ही जितनी उम्र की रही होंगी जब विद्वा हो गई ....
उफ़ ...! आपकी उम्र क्या रही होगी .....?
येही कोई 21-22 ....!?
क्या ! मैंने मन ही मन में सोचा -मैं २१ साल की हूँ और दादी ने इस उम्र में इतना कुछ देख लिया ... और तबसे वो विदवा हैं अकेली है ....
मुझे बड़ी अचरज हुई ... और कुछ कहने सुनने की हिम्मत नहीं हुई ... पूरी रात करवट बदलती रह गई ..... ! नींद से मानो आज दुश्मनी हो गई थी ....
सुबह माँ रसोई में नाश्ता बना रही थी , मेरा उतरा हुआ चेहरा देख पूछी -
तबियत तो ठीक है ?
हाँ !
तो फिर उदास क्यूँ हो?
मैं चुप ...माँ मुझे निहारती रही ....
फिर मैंने चूप्पी तोड़ी .....माँ जब आपकी शादी हुई तो आपकी उम्र क्या रही होगी ..?
२ १ ..माँ ने जवाब दिया ? क्यू ...आज ये सवाल ?
दादी की शादी कब हुई थी ? मैंने आपना दूसरा सवाल पूछ डाला ... माँ की सवाल की परवाह किये बगैर ...
जब वो 13 -1५ साल की रही होंगी शायद ..... उस जमाने में शादियाँ जल्दी हो जाया करती थी ..माँ ने समझाते हुए कहा ... चल अब नाश्ता कर ले नहीं तो तेरी बस छूट जाएगी ....
क्या तुम सब मेरी शादी भी करवा दोगे इतनी जल्दी ...मैंने दबे स्वर में कहा ....
माँ को ये उम्मीद नहीं थी मुझसे ... सँभालते हुए बोली ...मैं आज तुझे बताने ही वाली ...चल अब पता चल ही गया है तो बढ़िया हुआ ...आज तेरे बाबा गए हैं लड़के को देखने ...अगर पसंद आ गया तो बात आगे बढ़ाएंगे ...
और मेरी पसंद ? मैंने बात काटते हुए कहा ....
हम तुम्हारे माँ -बाप है ..तुम्हारा भला ही चाहेंगे ....
पर मुझे अभी शादी नहीं करनी ...
आज नहीं तो कल करनी है न ...?माँ ने कड़े स्वर में कहा ...लड़का अच्छा है ..खुश रहेगी ...पता नहीं बाद में ऐसा लड़का मिले न मिले ...
मुझे शादी नहीं करनी ...बाकी तुमसब देख लो .. गुस्से में पैर पटकती हुई रसोई से बहार निकल गई ...
सुन तो ..माँ पीछे - पीछे दौड़ी चली आयी .... अगर कोई लड़का तुझे पसंद है तो बता ...कहीं ना करने की वजह यह तो नहीं ...?
मैं ने माँ की और देखा ....ये आज उन्हें क्या हो गया था ...ये उनका डर था या अपनापन ...? मैं माँ की और बढ़ी और उनके हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा ....तुझे कबसे इस बात की फिक्र होने लगी ...तू जानती है ऐसा कुछ हुआ तो तुम्हें न सही किन्तु मैं दादी को ज़रूर बतौंगी ... पर ऐसा कुछ नहीं है ....मैं अभी पढ़ना चाहती हु ..कुछ बनना चाहती हु ...उसके बाद शादी करुँगी ...फिर किसी अंधे लंगड़े से भी कहा न शादी करने को तो आँख मूंदकर कर लुंगी ...मैंने मुस्कुराते हुए कहा ...माँ भी मुस्कुराई .... फिर अपना बस्ता लिया और कालेज के लिए निकल पड़ी .... रस्ते भर येही सोचते रही ...मैं अभी शादी हरगिज़ नहीं कर सकती ...अभी मुझे पढ़ना है ....अपने सपने पूरे करने है ...मुझे दादी की तरह एक कोने में अपनी ज़िन्दगी नहीं बितानी ... दादी ने तो ज़िन्दगी जी ही नहीं ...1५ साल की उम्र में शादी ....२ ३ साल में विदवा ... और उसके बाद जीवन कठिनाइयों से भरा .... बच्चों को पढाया ... उनके लिए सारे खेत और ज़मीन बेच डाले ... आज बाबा और चाचा दोनो इंजिनियर हैं ... उनकी शादियाँ की ... और आज घर के एक कोने में सोई रहती है ....उन्हें कोई नहीं दिखता ....बाबा नहीं ... माँ नहीं ...मैं भी नहीं ...बस दादाजी ...दादाजी में बसी थी उनकी जान ...इन सबके बीच में उनकी अपनी जिन्दागी तो बची ही नहीं ....
मैं कालेज से जल्दी आ गई .... आते ही माँ ने कहा .....तेरे बाबा का फ़ोन आया था ...उन्हें लड़का पसंद है ....कल ही लड़के वाले तुझे देखने आना चाहते हैं ...उन्हें थोड़ी जल्दी है ....लड़का २ महीने की छुट्टी में आया हुआ है ...इसी हौरान शादी करनी है उन्हें ....
क्या ....? माँ तुम फिर शुरू हो गई ....? मैं ने कहा ना मुझे अभी शादी नहीं करनी ...फिर अब ये क्या नौटंकी है ..ये देखना दिखाना ..? सुबह बात हुई थी ना हमारी .... मुझे लगा तुम बाबा को समझा दोगी ..पर तुम पर तो मेरी बातों का कोई असर ही नहीं ...? वही राग अलापे पड़ी हो ... ? मैं गुस्से से लाल हो रही थी .. हमारी बात बहस में बदल गई थी ...
क्यूँ नहीं करनी शादी ..? बच्ची नहीं रही तू ...? मुझे तुझसे कोई बहस नहीं करनी ...चुप चाप अपने कमरे में जा ... कल शाम को वो लोग आयेंगे ..तैयार हो जाना ...
मैं आंधी की तरह हाल से निकली और दादी के कमरे में गई ...वो भी शायद मेरी तेज़ आवाज़ सुनकर उठ बैठी थी ....मैं उनके गोद में सर रखकर रोने लगी ...
दादी ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा ...क्या हुआ क्यू इतने गुस्से में है ..?
देखो न दादी माँ बाबा मेरी शादी कराना चाहते हैं ...
तो इसमें बुरा क्या है ..? दादी ने मेरी बात काटते हुए कहा ..?
मैं अभी पढ़ना चाह्ती हु ...कुछ बनना चाहती हु ..उसके बाद शादी ...प्लीज दादी कुछ करो न ...?
तूने माँ को ये सब बताया ?
हाँ सुबह ही सब बता कर गई थी ..और देखो न कॉलेज से आते ही यह बिजली गिरा दी ..
मैं समझ सकती हूँ ...मैंने भी ऐसा ही महसूस किया था ..जब छोटी सी उम्र में ही मेरी शादी हो गई थी ..तुझे तो कमसे कम बता दिया गया ..तेरी मर्ज़ी जान ली गई ..हमारे ज़माने में ऐसा कुछ भी नहीं होता था ..खैर हम तो अनपढ़ - गवार थे ...हमारी पीढ़ी अलग थी ....पर तेरी माँ भी क्या कर करे ...वही करती है जो उसका पति कहता है ..
दादी तुम बाबा को समझाओ न वो तुम्हारी बात ज़रूर मानेगें ...
देखती हु ..... जा अब खान खा कर आराम कर ....मै अपने कमरे में आ गई ..
अपने बिस्तर पर लेट गई ....
रात जब बाबा दादी को खान खिलाने गए ..तो रोज़ की तरह मुझे आवाज़ लगाईं ...बननी ..माँ का खाना ले आ .... मैं भी किचेन से दादी की थाली ले आयी और बाबा के हाथों में रख दिया ...उन्होंने मेरी आँखों की तरफ देखा ..काफी लाल हो गए थे रोते रोते ..पुछा ये तेरी आँखों को क्या हो गया ...
कुछ नहीं ... बोलते हुए वहीँ बैठ गई ...
तभी दादी ने टोका ...ये क्या कहेगी ....तेरी वजह से इसकी ये हालत हुई है ..
मैंने क्या किया ...? बाबा ने पूछा ?
इसकी शादी लगा आया है ...इसकी मर्ज़ी के बगैर ?
मर्ज़ी ..इसमें मर्ज़ी की क्या बात है ...सबकी शादी होती है ..
पर ये अभी पढ़ना चाहती है ?
तो किसने रोक है ...शादी के बाद पढ़ ले ?
शादी के बाद पढ़ाई कहा होती है ..बीटा ...फिर तो पारिवारिक पचड़ों में लडकियां ऐसी पड़ती है ..की उनका निकलना मुश्किल होता है ...
दादी पुराने ज़माने की थी ..पर उनकी सोच पर मुझे आश्चर्य हो रहा था ....काश अम्मा और बाबा भी ऐसा सोच पाते ..
लड़का और परिवार काफी अच्छा है ...पता नहीं अम्मा आगे कैसा दिन आये ...बाबा समझाते हुए कहा
इतना क्यू सोचता है ..ऐसे लाखों मिलेगें तेरी बेटी को ...
इतना आसान नहीं है अम्मा ...मैंने उन्हें कल बुला भी लिया है ..क्या समझेंगे वोह ..
उनकी छोड़ अपनी बेटी की सोच ....होनहार है पढने का शौक़ है इसे ...क्यू इसकी इक्षा को मार रहा है ...
तुमलोग खामख्वा बात का बतंगर बना रहे हो ..कल लड़के वाले आ रहे हैं ...बस और मुझे कुछ नहीं सुन्ना ...
पर मैं शादी नहीं करना चाहती ..और ये आपको सुन्ना ही पड़ेगा ...मैंने एक झटके में कह डाला ...जाने कहाँ से मुझमें हिम्मत आ गई थी ...बाबा मेरी ओर एक टक देखते रह गए ... मैं नज़रें झुकाए वहीँ बैठी रही ...बाबा की ओत देखने की हिम्मत ही नहीं हुई .... थोड़ी देर के लिए वहां चुप्पी पसर गई ...फिर बाबा खाने की थाली वही छोड़ कमरे से निकल गए ...मैं और दादी चुप चाप देखते रह गए ....मुझे कमरे से निकलने की इक्षा ही नहीं हुई ...दादी के बिस्तर पर जा कर लेट गई ..
दादी ...मैंने कुछ गलत तो नहीं क्या ..
नहीं बेटे बिलकुल नहीं ...तुझे हक है तेरा फैसला लेने का ...
मैंने आज तक बाबा से ऐसे बात नहीं की ....मेरी वजह से बाबा ने खाना भी नहीं खाया ...
कोई बात नहीं ...अगर उसमें थोड़ी भी समझ हुई तो वो तुझे ज़रूर समझेगा ... आज मुझे दादी बहुत अपनी लग रही थी ...सबसे प्यारी ...सबसे अच्छी ....!
सुबह बाबा ऑफिस नहीं गए थे ....घर शमशान लग रहा था ..सब चुप ..सब उदास ... माँ रसोइये में बिन मन खान बना रही थी .....बहार बारिश हो रही थी ...मैं बालकनी में बैठी थी ..तभी बाबा वहां आये ... मैंने उपस्तिथि भांप ली थी ...पर पीछे देखने की हिम्मत नहीं हुई .....
तू कालेज नहीं गई ....बाबा ने पीछे से ही मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ....
यूँही ...मैंने नज़रें चुराते हुए कहा ...
क्यू ..पढ़ाई नहीं करनी ...
मैंने बाबा की तरफ देखा ..
बाबा की चेहरे पर मुस्कराहट थी ..मैं समझ गई ... उनके गले लिपट गई ...और रोने लगी ....बाबा मैं आपका दिल नहीं दुखन चाहती थी ...पर ...
मैंने उन्हें उन्हें फोन करके मन कर दिया है ... कह दिया है क हमें अभी शादी नहीं करनी ...तू अभी पढ़ना चाहती है ...बाबा ने मेर आंसू पूछते हुए कहा ....उनकी चेहरे पर मुस्कराहट थी ....
थैंक्यू बाबा थान्क्यु ...बोलती हुई दादी के कमरे की तरफ भागी ...
मेरा आज कालेज में मनन ही नहीं लग रहा था ...बस घर जाकर दादी से ढेर साड़ी बात करना चाहती थी ...सो जल्दी ही कलेगे से निकल गई ...बारिश हो रही थी ...जन भूजकर भींगते हुए घर आयी ...माँ ने भी मुझे पानी से टार बतर देख कुछ नहीं कहा ...शायद वो मेरी ख़ुशी भांप गई थी ...कपडे बदल कर मैं सीधे दादी के कमरे में गई ...वो खाना खा कर सो रही थी ...मेरी आहट पाते ही बोलीं ...
आ गई ... बहुत जल्दी ... ...
हाँ दादी आज क्लास नहीं हुए ... बोलते उनके सिरहाने जा बैठी ... तबियत कैसी है ?
ठीक हु बन्नी ... बुढापे का क्या लेना आज हु कल नहीं रहूंगी ...
ऐसा न बोलो दादी , झट से उन्हें काटते हुए कहा .... वो हसने लगी वही झुर्रियों वाली हांसी ....
बोली .... इस अंधी बूढी को और कितने दिन पकडे रखोगी ?
मैं नहीं जानती ... तुम कहीं नहीं जाने वाली बस ... अभी तो मेरी शादी में नाचना है तुम्हें ...ढोल बजने हैं ...मेरी बलायें लेनी हैं ... मैं ने उन्हें ज़ोर से पकड़ते हुए कहा ....
अच्छा ठीक है बाबा नहीं जओंगी ....अब जा खाना खाकर कर आराम कर ले ...मुझे पता है तू रात भर नहीं सोई ...
तुम्हें कैसे पता ? मैंने पुछा !
वो फिर हंसी ये सर के बाल धुप में सुख कर सफ़ेद न हुए है .... रात भर तू करवट बदल रही थी ...
ऐसी करवटें हमने भी बदलीं हैं जब नींद नहीं आती थी तो ....
जा थोडा सो ले ... शरीर को आराम मिलेगा ...वरना आँखों के नीचे काले घेरे बन जायेंगे मेरी तरह .... फिर कोई लड़का तुझे पसंद न करेगा ... फिर तेरे बाबा मुझे भी ताने देने लगेगा की मेरी वजह से तेरी शादी नहीं हो पायी ... दा s अ s अ s दी ..मैंने पैर पटकते हुए कहा .... दादी ठहाके मार कर हंसने लगी ... मैंने उन्हें बहुत दिनों बाद इतने खिखिला कर हँसते हुए देखा था .... दिमाग में जो भी काश म काश चल रही थी , इस हंसी ने दूर कर दिया .!
रात के आठ बज रहे थे ...मैं अपने कमरे में पढने की कोशिश कर रही थी ...तभी बाबा की आवाज़ आयी ... बन्नी ..... मैं फ़ौरन बाबा के पास गई ...क्या हुआ बाबा ?
अम्मा का खाना लाना ?
बाबा आज मैं खिला दू?
क्यूँ ? तुझे पढाई नहीं करनी?
वो तो रोज करती हु, पर आज मेरा जी कर रहा है ...
तभी बीच में दादी बोलीं - खिला ने दे उसे तेरे हाथों से तो रोज़ खाती हु ...
बाबा ने इशारों में आज्ञा दे दी ...मैं झटपट रसोई में गई और दादी का खाना ले ई ..और उनके बगल में जा बैठी
मैंने निवाला बनाया और अपना हाथ उनके मुंह क सामने ले जा कर कहा ...." दादी क मुहिया में गुटूक " उन्होंने ठीक वैसे ही चिड़िये की तरह अपना मुंह खोल दिया ....और मैंने माँ की तरह खाना उनके मुंह में डाल दिया .... एक अजब सी संतुष्टि हुई मन को .... एक रोटी खाने के बाद दादी ने मना कर दिया ...
अब बस! ...
क्यूँ दादी ? रोज़ तो दो रोटियां खाती हो ...
आज मन नहीं है बन्नी ....
मेरे हाथों से खा रही हो इस लिए ? .. बाबा खिलाते तो सारा चट कर जाती ...
नहीं रे ऐसी बात नहीं ... सच में जी नहीं कर रहा ...
क्यूँ तबियत तो ठीक है ?
हाँ ...ठीक ही है ...दादी ने लम्बी सांसें भरते हुए कहा ... जा तू भी खा ले और आकर मेरा थोडा सर दबा दे ? भारी भारी सा लग रहा है ...
अभी दबा दूँ?
नहीं पहले खाना खा ले ...सोते वक़्त दबा देना ....
मैं अपने दिनचर्या से फारिग होकर दादी के पास आयी ...उनकी आँखें बूंद थी .... मैं पास जाकर बैठ गयी और सर दबाने लगी ... आज वो कुछ थकी थकी सी लग रही थी ... इसलिए मैंने बात करना सही नहीं समझा ....थोड़ी देर बाद दादी बोलीं ...बन्नी एक बात कहूँ?
कहो दादी ...
मुझे पता हैं सब जानना चाहते हैं की मैंने अपने संदूक में क्या रखा है ..... और जहाँ तक मैं समझ पाई हूँ तुझे सबसे ज्यादा उत्सुकता है .... मैं झेप गई ...नै दादी ऐसी बात नहीं है ....मैंने अपनी सफाई में कहां ...
रहने दे तू मुझसे झूट नहीं बोल सकती ....
तुझसे एक निवेदन है
ऐसा न कहो, आज्ञा दो , न मानू तो एक चमाट लगना ...
चमाट देने की भी हिम्मत कहाँ बची है मुझमे , वो मुस्कुराई ....आज की मुस्कराहट थोड़ी अलग थी ....
बोलो क्या कहना चाहती हो? मैंने पुछा ...
सुन जब मैं मर जाओं ...तो मेरे संदूक को तू संभाल कर रखना जब तक रख सकती हो ...मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी ... और संदूक की चाभी मेरे हाथों में थमा दी ...
क्यूँ बेतुकी बातें कर रही हो ...तुम तो अभी कई साल और जिओगि ... गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में तुम्हारा नाम छापेगा ... श्रीमती प्रमिला देवी ....कहते हुए दादी को गले लगा लिया ...
दादी के आँखों से आंसू टपक पड़े ... देखना चाहती है क्या है उसमें ....
नहीं दादी तुम अभी आराम करो ...हम कल देखेंगे ..... जिस दिन का मैं बरसों से इंतज़ार कर रही थी वो एक एक झटके में मेरे सामने आ गया फिर भी मैंने न कर दिया ...पता नहीं क्यूँ ..... आज मुझे बिलकुल ही इक्षा नहीं हुई उस संदूक को देखने की .... शायद अब अधिकार मिल गया था उसका इस लिए .... क्यूंकि जो वास्तु मिल जाये उसकी चाहत ख़त्म हो जाती है .... पर इस सन्दर्भ में शायद ऐसा नहीं था ...आज दादी उदास थी ...उस संदूक को खोलकर मैं उन्हें और उदास नहीं करना चाहती थी ....आज मैं स्वार्थी नहीं बनना चाहती थी .....
अब आप सो जाओ दादी ...आराम मिलेगी आपको ...
ठीक है बन्नी ...आज मेरा भी जी नहीं कर रहा ज्यादा बातें करने को .... तू भी सो जा ....
मैं उनके बगल में लेट गयी .... छत देखते देखते नींद आ गई ....
सुबह जब आँखें खुली तो दादी की तरफ देखा ...वो अभी तक सो रही थी .... शायद तबियत ठीक नहीं थी उनकी ...सोचा खैरियत पूछकर जाओं ....
दादी ....कैसी तबियत है? सर का दर्द कैसा है ...? कोई जवाब नहीं .... शायद बहुत गहरी नींद में थी ...मैंने उठाना ठीक नहीं समझा .... कहीं बुखार तो नहीं ....छू कर देख लेती हु ....पर ये क्या ..उनका शरीर बिलकुल ठंडा था ...मैं सन्न हो गई .... किसी अमंगल छाया को भांपते हुए मैंने माँ को आवाज़ लगाई ...माँ ! माँ ! जल्दी आओ ... माँ दौड़ी भागी दादी के कमरे में आये ?
क्या हुआ?
दादी का शरीर बिलकुल ठंडा हुआ पड़ा है ... छोटू को बोलो पड़ोसे वाले डॉक्टर अंकल को बुला लाए … मेरी आवाज़ में कपकपाहट थी ....
जब तक छोटू भी कमरे में आ गया .... जा डॉक्टर अंकल को बुला ला ...
क्यूँ दीदी क्या हुआ ?
तुझसे जितना बोल रही हु उतना कर ... वो चुप चाप कमरे से चला गया ...लौटा तो डॉक्टर अंकल साथ में थे ....
उन्होंने दादी की नब्ज़ देखी ....
बाबा को हमने फ़ोन कर दिया ... अभी -अभी ऑफिस गए थे ....बुआ और चाचा भी चले आयें .... दादी मृत्य शय्या पर लेटी थी ...हम सब उन्हें निहार रहे थे ...आखिर बार !
एक हफ्ते बाद शुभ दिन देखकर श्राद्ध भी करवा दी गयी ... उस दिन हम सब दादी के कमरे में बैठे थे ...माँ, बाबा , बुआ , चाचा, छोटू और कुछ रिश्तेदार ...उनकी यादों को ताज़ा कर रहे थे ...तभी छोटू बीच में ही बोल पड़ा ....
बाबा मुझे दादी का संदूक देखना है ....आज पहली बार मैं संदूक का नाम सुनकर खीज गई थी ... बिलकुल दादी की तरह ... मैं नहीं देखना चाहती थी क्या है उसमें ....कभी भी नहीं .... और न हीं चाहती थी की कोई और देखे दादी की संदूक खुली ....मैं बाबा के पीछे खड़ी थी ...संदूक में रखी चीज़ों को देखकर स्तभ्ध रह गई ........उसमें थी -- दादा की एक तस्वीर ...उनकी लिखी कुछ चिठ्ठियाँ ....एक लाल रंग की साड़ी ...एक अध्बुनी स्वेटर .....टूटी चूडियाँ ....और एक सिन्दूर की डिबिया .... बस इतना ही रहस्य था उस संदूक में... !!!!