Tuesday, April 30, 2013

एक महिला जिसका बलात्कार होता है .. साँसे बच  जाती है ...फिर भी एक दिन सुनने में आता है की ज़माने से तंग  आकर फांसी लगा लिया उसने ...नदी में डूब गई ...ज़हर खा लिया ....आग  लगा लिया .... अपनी इज्ज़त तो न बचा पाई  पर अपने परिवार की इज्ज़त ...अपने पति की ...अपने भाई की ...अपने बाप की ...अपने शहर की .... बचाने के लिए ...!
 वहीँ दूसरी और एक महिला उसका भी बलात्कार होता है ...पर उसके परिवार वालों ने उसको सप्पोर्ट किया ..उसका साथ दिया वो उस स्तिथि से उभर गई और आज ज़िंदा है खुश है   ....अब वो भूत  उसके वर्तमान में नहीं जीता ..... सिर्फ वो जीती है ...अपनों के साथ ...सपनो के साथ ....सच में इसे कहते हैं जज्बा ..इसे कहते हैं हिम्मत ....जीना इसे कहते है ...वारना  नाली के कीड़े भी तो जीते ही हैं ...उस हादसे को भूली तो नहीं ..पर सिर्फ उसकी वजह से उसने जीना नहीं छोड़ा  ....उस हादसे को उसने कभी अपने  जीवन का फोकस नहीं बनाया ...सही तो है ..... ये ही होना भी चाहिए .....
बलात्कार  डरावना ...बहुत ही भयानक होता है ..पर सिर्फ उन सब कारणों के लिए नहीं जो हमारे दिमाग में ठूसे गए हैं ...खास कर महिलाओं के दिमाग में ....ये डरावना है क्यूंकि एक  महिला का अनादर हुआ है ..उसे भीतर से तोड़ा गया है ....उसे डराया गया है ... उसके शरीर पर किसी और ने कब्ज़ा करके उसकी आत्मा को चोट पहुंचाई ...एक दर्दनाक हालात से गुज़री ... ये सिर्फ इसलिए भयानक नहीं है  की आप ने अपनी नैतिकता खो दी ...ये इसलिए बुरा नहीं है की उसके भाई उसके बाप की बेईज्ज़ती हुई ...  किसी महिला  का  गुण या  नैतिकता उसके  अंगों में नहीं छुपी होती ...जिस तरह किसी पुरुष का दिमाग उसके  जननांग में नहीं होता ...
ये सारे समीकरण हटा दिए जाए तो भी  बलात्कार भयानक होता है पर ये  व्यक्तिगत होना चाहिए .... न की एक societal horror .... समाज को चाहिए के ऐसी महिलाओं का नैतिक रूप से सपोर्ट करे ...उसे  मानसिक और शारीरिक चोट से उभारे ...  न की अपने अनाप शनाप और रद्दी बातों  से उसे शर्मिदा करे ...अपराधबोध कराये ...

कानून  दोषी को सज़ा देगा ....पीड़ित को सुरक्षा देगा ...पर समाज उसके जीने के लिए  उचित माहौल बनाएगा ... तब जाकर वो महिला आगे आएगी ..अपनी लड़ाई खुद लड़ेगी ..अपने परिवार के साथ .....समाज के साथ  .... जुड़कर !

Monday, April 22, 2013


तुम्हारी उम्र ..तितलियों के पीछे भागने की थी ..
तुम्हारी उम्र ...गुड़ियों से खेलने की थी ...
तुम्हारी उम्र ...दादी नानी की कहानी सुनने की थी ...
तुम्हारी उम्र ...शैतानियाँ करने की थी ...

पर इस उम्र में .. तुम्हें क्या मिला ...?
तुम्हारे पंख जड़ से उखाड़ दिए गए ...
तुम्हारी गुडिया तुमसे छीन ली गई ...
परियों वाली कहानियों का अब कोई अस्तित्व नहीं बचा तुम्हारे लिए ...

तुम्हें पता भी नहीं तुम  दो दिन में कितनी बड़ी हो गयी ...

अब तुम बहुत दूर चली जाओगी ...
शायद ये सब तुम्हें एक धुधली ...डरावने ... सपनो की तरह याद रहे ...
बड़ी होकर जब अपने जख्मों को देखोगी  ....
बहुत सवाल आयेंगे तुम्हारे मन में ...
जिसका जवाब आज  नहीं है ... उस वक़्त भी नहीं रहेगा ... !


 

Sunday, April 21, 2013



मैं जब भी मांगती हूं
कुछ अपनी जिदंगी से,
जिदंगी मुझसे मेरा,
सबकुछ मांग लेती है,...प्रीति सुराना





मैं जब भी कालेज जाती हू ...नुक्कड़ पे खड़े लड़के छेड़ते हैं ...सीटी बजाते हैं ....कमेन्ट मारते हैं ....!
ऐसे कपडे पहनोगी  तो और क्या होगा ...?
देखिये आज मैंने सभ्य कपडे पहने हैं ...फिर भी नुक्कड़ पे खड़े लड़के बाज़ नहीं आते ...आज तो उनमें से एक ने मुझे चेलते चेलते चींटी भी काटा  ...!
ज़रूर तुमने कुछ इशारा किया होगा ...नज़रे नीची रख कर चला करो ...और अपने समय का ध्यान रखो ....!!!
सुनिए आज मेरी नज़रें नीची थी ...पैदल भी नहीं थी मैं ...रिक्शे पर थी ....कालेज जाने का समय भी बदल दिया है ...फिर भी वो लड़के वही मिले ...आज तो हद कर दी ....मेरी चुनरी खींची और हँसते हुए चले गए ....!
एक तुम ही हो क्या पूरी दुनिया में ...और  वो तुम्हारे ताक  में बैठे रहते हैं ....इतनी परेशानी है तो मत जाओ कालेज ...!
 सुनिए मैंने कालेज जाना बंद  कर दिया है ...नुक्कड़ वाले लड़के मेरे घर के बाहर बैठने लगे हैं ...!
घर की दरवाज़े खिड़कियाँ बंद  कर दो ... बहार झाकने की भी ज़रुरत नहीं तुम्हें ...
सुनिए मैंने खिड़की दरवाज़े भी बंद  कर दिए ...उनकी आवाजें फिर भी कमरें तक आती है ....उनके चेहरे दिखाई देते हैं मुझे !
अपनी आँखे मूँद लो ....कान में परदे डाल  लो .....वो तो लड़के हैं करेंगे ही ...!तुम सुधरो .... तुम बदलो ...!
देखिये आप के कहने पर  मैंने नज़रें नीचे की ...समय बदला ....ज़िन्दगी बदली ...कपडे बदले ..फिर भी आज मैं वस्त्रहीन हो गई ...!
तुम हो ही इसी लायक ....!और वो ठहाके मारने लगे ...!!!!

 

Thursday, April 18, 2013

    
बहुत छोटी थी ..याद नहीं कुछ ...
कैसे आयी ...किसने लाया ....?
धुंधली सी यादें हैं ..बचपन की
माँ की ...बाबा की ...छुटकी की ..
हमारी गरीबी की ....

यहाँ आयी ..
नाम मिला ..
वैश्या ...!

शरीर रात में चोट खाता ..
आत्मा दिन में घयाल होती ...
किसी की आँखें तार तार कर जाती ..किसी की बोली ...!

चटखती धुप में भी ...आँख फाड़कर तंज़ कस जाते ...
रात की शीतलता में आँखें बंद हो जाती उनकी ...
सिर्फ मेरा शरीर दिखता ..

मुर्दे की तरह रोज़ रात में कब्र से निकलती ...
चम्गादर मुझे नोचते ...
पहली किरण के साथ वापस कब्र में लौट आती ..
उजाला नसीब में कहाँ ...

जिस्म का व्यापार करती हु ..
तुम सफ़ेद कालर ..मेरे खरीदार हो ..
बस एक बात सुनो ..
मैं जो भी हु अपने लिए हु ...
तुम्हारे लिए नहीं ....!

हाँ मैं वैश्या हु ....


  

Friday, April 12, 2013


एक पिंजडा 
परिंदे को पालने  के लिए 
खाना , पानी सबकुछ मिलता है 
मालिक ने परिंदे को पिंजड़े में डाला 
कहा --- जितना  चाहो चहक सकती हो 
किन्तु ध्यान रहे शोर मत करना ...
इश्क में  ...
वक़्त ऐसा गुजरा ..
कुछ याद नहीं ...
फिर सुबह हुई
फिर शाम हुई ..
दर्द हुआ  ..
आंसू निकले  ...
फिर तो ...
दर्द भी सहना सीखूं   ..
वरना ऐसा करूँ  ...
के
औकात में रहना सीखूं ....