Monday, April 22, 2013


तुम्हारी उम्र ..तितलियों के पीछे भागने की थी ..
तुम्हारी उम्र ...गुड़ियों से खेलने की थी ...
तुम्हारी उम्र ...दादी नानी की कहानी सुनने की थी ...
तुम्हारी उम्र ...शैतानियाँ करने की थी ...

पर इस उम्र में .. तुम्हें क्या मिला ...?
तुम्हारे पंख जड़ से उखाड़ दिए गए ...
तुम्हारी गुडिया तुमसे छीन ली गई ...
परियों वाली कहानियों का अब कोई अस्तित्व नहीं बचा तुम्हारे लिए ...

तुम्हें पता भी नहीं तुम  दो दिन में कितनी बड़ी हो गयी ...

अब तुम बहुत दूर चली जाओगी ...
शायद ये सब तुम्हें एक धुधली ...डरावने ... सपनो की तरह याद रहे ...
बड़ी होकर जब अपने जख्मों को देखोगी  ....
बहुत सवाल आयेंगे तुम्हारे मन में ...
जिसका जवाब आज  नहीं है ... उस वक़्त भी नहीं रहेगा ... !


 

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