Sunday, April 21, 2013



मैं जब भी मांगती हूं
कुछ अपनी जिदंगी से,
जिदंगी मुझसे मेरा,
सबकुछ मांग लेती है,...प्रीति सुराना





मैं जब भी कालेज जाती हू ...नुक्कड़ पे खड़े लड़के छेड़ते हैं ...सीटी बजाते हैं ....कमेन्ट मारते हैं ....!
ऐसे कपडे पहनोगी  तो और क्या होगा ...?
देखिये आज मैंने सभ्य कपडे पहने हैं ...फिर भी नुक्कड़ पे खड़े लड़के बाज़ नहीं आते ...आज तो उनमें से एक ने मुझे चेलते चेलते चींटी भी काटा  ...!
ज़रूर तुमने कुछ इशारा किया होगा ...नज़रे नीची रख कर चला करो ...और अपने समय का ध्यान रखो ....!!!
सुनिए आज मेरी नज़रें नीची थी ...पैदल भी नहीं थी मैं ...रिक्शे पर थी ....कालेज जाने का समय भी बदल दिया है ...फिर भी वो लड़के वही मिले ...आज तो हद कर दी ....मेरी चुनरी खींची और हँसते हुए चले गए ....!
एक तुम ही हो क्या पूरी दुनिया में ...और  वो तुम्हारे ताक  में बैठे रहते हैं ....इतनी परेशानी है तो मत जाओ कालेज ...!
 सुनिए मैंने कालेज जाना बंद  कर दिया है ...नुक्कड़ वाले लड़के मेरे घर के बाहर बैठने लगे हैं ...!
घर की दरवाज़े खिड़कियाँ बंद  कर दो ... बहार झाकने की भी ज़रुरत नहीं तुम्हें ...
सुनिए मैंने खिड़की दरवाज़े भी बंद  कर दिए ...उनकी आवाजें फिर भी कमरें तक आती है ....उनके चेहरे दिखाई देते हैं मुझे !
अपनी आँखे मूँद लो ....कान में परदे डाल  लो .....वो तो लड़के हैं करेंगे ही ...!तुम सुधरो .... तुम बदलो ...!
देखिये आप के कहने पर  मैंने नज़रें नीचे की ...समय बदला ....ज़िन्दगी बदली ...कपडे बदले ..फिर भी आज मैं वस्त्रहीन हो गई ...!
तुम हो ही इसी लायक ....!और वो ठहाके मारने लगे ...!!!!

 

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