एक महिला जिसका बलात्कार होता है .. साँसे बच जाती है ...फिर भी एक दिन सुनने में आता है की ज़माने से तंग आकर फांसी लगा लिया उसने ...नदी में डूब गई ...ज़हर खा लिया ....आग लगा लिया .... अपनी इज्ज़त तो न बचा पाई पर अपने परिवार की इज्ज़त ...अपने पति की ...अपने भाई की ...अपने बाप की ...अपने शहर की .... बचाने के लिए ...!
वहीँ दूसरी और एक महिला उसका भी बलात्कार होता है ...पर उसके परिवार वालों ने उसको सप्पोर्ट किया ..उसका साथ दिया वो उस स्तिथि से उभर गई और आज ज़िंदा है खुश है ....अब वो भूत उसके वर्तमान में नहीं जीता ..... सिर्फ वो जीती है ...अपनों के साथ ...सपनो के साथ ....सच में इसे कहते हैं जज्बा ..इसे कहते हैं हिम्मत ....जीना इसे कहते है ...वारना नाली के कीड़े भी तो जीते ही हैं ...उस हादसे को भूली तो नहीं ..पर सिर्फ उसकी वजह से उसने जीना नहीं छोड़ा ....उस हादसे को उसने कभी अपने जीवन का फोकस नहीं बनाया ...सही तो है ..... ये ही होना भी चाहिए .....
बलात्कार डरावना ...बहुत ही भयानक होता है ..पर सिर्फ उन सब कारणों के लिए नहीं जो हमारे दिमाग में ठूसे गए हैं ...खास कर महिलाओं के दिमाग में ....ये डरावना है क्यूंकि एक महिला का अनादर हुआ है ..उसे भीतर से तोड़ा गया है ....उसे डराया गया है ... उसके शरीर पर किसी और ने कब्ज़ा करके उसकी आत्मा को चोट पहुंचाई ...एक दर्दनाक हालात से गुज़री ... ये सिर्फ इसलिए भयानक नहीं है की आप ने अपनी नैतिकता खो दी ...ये इसलिए बुरा नहीं है की उसके भाई उसके बाप की बेईज्ज़ती हुई ... किसी महिला का गुण या नैतिकता उसके अंगों में नहीं छुपी होती ...जिस तरह किसी पुरुष का दिमाग उसके जननांग में नहीं होता ...
ये सारे समीकरण हटा दिए जाए तो भी बलात्कार भयानक होता है पर ये व्यक्तिगत होना चाहिए .... न की एक societal horror .... समाज को चाहिए के ऐसी महिलाओं का नैतिक रूप से सपोर्ट करे ...उसे मानसिक और शारीरिक चोट से उभारे ... न की अपने अनाप शनाप और रद्दी बातों से उसे शर्मिदा करे ...अपराधबोध कराये ...
कानून दोषी को सज़ा देगा ....पीड़ित को सुरक्षा देगा ...पर समाज उसके जीने के लिए उचित माहौल बनाएगा ... तब जाकर वो महिला आगे आएगी ..अपनी लड़ाई खुद लड़ेगी ..अपने परिवार के साथ .....समाज के साथ .... जुड़कर !
वहीँ दूसरी और एक महिला उसका भी बलात्कार होता है ...पर उसके परिवार वालों ने उसको सप्पोर्ट किया ..उसका साथ दिया वो उस स्तिथि से उभर गई और आज ज़िंदा है खुश है ....अब वो भूत उसके वर्तमान में नहीं जीता ..... सिर्फ वो जीती है ...अपनों के साथ ...सपनो के साथ ....सच में इसे कहते हैं जज्बा ..इसे कहते हैं हिम्मत ....जीना इसे कहते है ...वारना नाली के कीड़े भी तो जीते ही हैं ...उस हादसे को भूली तो नहीं ..पर सिर्फ उसकी वजह से उसने जीना नहीं छोड़ा ....उस हादसे को उसने कभी अपने जीवन का फोकस नहीं बनाया ...सही तो है ..... ये ही होना भी चाहिए .....
बलात्कार डरावना ...बहुत ही भयानक होता है ..पर सिर्फ उन सब कारणों के लिए नहीं जो हमारे दिमाग में ठूसे गए हैं ...खास कर महिलाओं के दिमाग में ....ये डरावना है क्यूंकि एक महिला का अनादर हुआ है ..उसे भीतर से तोड़ा गया है ....उसे डराया गया है ... उसके शरीर पर किसी और ने कब्ज़ा करके उसकी आत्मा को चोट पहुंचाई ...एक दर्दनाक हालात से गुज़री ... ये सिर्फ इसलिए भयानक नहीं है की आप ने अपनी नैतिकता खो दी ...ये इसलिए बुरा नहीं है की उसके भाई उसके बाप की बेईज्ज़ती हुई ... किसी महिला का गुण या नैतिकता उसके अंगों में नहीं छुपी होती ...जिस तरह किसी पुरुष का दिमाग उसके जननांग में नहीं होता ...
ये सारे समीकरण हटा दिए जाए तो भी बलात्कार भयानक होता है पर ये व्यक्तिगत होना चाहिए .... न की एक societal horror .... समाज को चाहिए के ऐसी महिलाओं का नैतिक रूप से सपोर्ट करे ...उसे मानसिक और शारीरिक चोट से उभारे ... न की अपने अनाप शनाप और रद्दी बातों से उसे शर्मिदा करे ...अपराधबोध कराये ...
कानून दोषी को सज़ा देगा ....पीड़ित को सुरक्षा देगा ...पर समाज उसके जीने के लिए उचित माहौल बनाएगा ... तब जाकर वो महिला आगे आएगी ..अपनी लड़ाई खुद लड़ेगी ..अपने परिवार के साथ .....समाज के साथ .... जुड़कर !
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